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गुरूद्वारा नाहन

‘‘नाहन में साढे़ आठ माह रहे थे गुरू गोविंद सिंह’’
खासला पंथ के संस्थापक गुरू गोविंद सिंह नाहन में करीब साढ़े आठ महीने के प्रवास पर रहे। पावंटा जाने से पूर्व वे नाहन रहे। इस दौरान गुरू ने महाराजा को एक तलवार भी भेंट की थी। इस तलवार को सरकारी समारोह के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता था। किन्तु बाद में इसे तोष खाने में जमा करवा दिया गया। वर्तमान में यह तलवार महारानी पदमिनी की निजी संपति के रूप में उनके पास विद्यमान है। नाहन गुरूद्वारा चैगान के समीप स्थित है।
सिरमौर नरेश मेदनी प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोविंद सिंह जी सन 1685 में नाहन आए थे। इस दृष्टि से यह स्थल अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है। सिखों के दसवें गुरू, गुरू गोविंद सिंह गढ़वाल के राजा फतह शाह से रक्षा के लिए नाहन आए थे। किन्तु दो रियासतों के बीच मैत्रीपूर्ण एग्रीमेंट के बाद मामले को समाप्त कर दिया गया।
कहते हैं कि नाहन में गुरूजी के ठहराव के दौरान यहां पर एक सिंह का आतंक था। गुरू ने सिंह का वध कर शहर को भयमुक्त किया था। कहा जाता है कि महाभारत काल के मुख्य पात्र ‘जयद्रथ’ शाप के कारण एक सिंह के रूप में पुनः जीवित हुए थे। गुरू जी ने अपनी दिव्य तलवार से सिंह का वध कर दिया जिसके फलस्वरूप जयद्रथ की आत्मा शरीर से मुक्त हो गई। जीवाश्म के रूप में यहां स्थापित किया गया। कहा जाता है कि यहां पर खुदाई के दौरान प्राप्त सिंह का जीवाश्म उसी जयद्रथ रूपी, सिंह का था जिसमें महाभारत में शापित किया गया था।
जिस तलवार से गुरूजी ने सिंह का वध किया था उसे उन्होंने नाहन से पांवटा जाते समय सिरमौर नरेश को भंेट कर दी थी। गुरूजी की यह दिव्य तलवार लंबे समय तक सिरमौर नरेशों के लिए पूजनीय संपत्ति के रूप में रही। वर्तमान में यह तलवार महारानी पदमनी के पास सुरक्षित है।

 

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