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‘माऊंटेन मैनः 22 सालों में हथौड़ा छेणी से चीर डाला पहाड़’

माऊंटेन मैन....! हां...! दुनिया उसे इसी नाम से जानती है। बिहार के गया जिला के गहलौर गांव का रखने वाला। एक गरीब...। और भूमिहीन शख्स। दशरथ मांझी... वह काम कर गया। जिसे अभी तक केवल बादशाह ही कर पाए थे। उसने अपने युवाकाल के 22 बरसों में। उस पहाड़ का घमंड चकनाचूर कर दिया। जिसकी वजह से उसकी पत्नी ने दम तोड़ दिया था। 
दशरथ मांझी...! उसने अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने के लिए। पहाड़ के सीने पर इतने हथौड़े बरसाए कि पहाड़ भी कांप उठा। 
कहानी बड़ी अजीब और रोंगटे खड़ा कर देने वाली है। लेकिन समाज और युवाओं के लिए प्रेरणा दायक भी। बात 60 के दशक की है। गया जिला के गहलौर गांव का निवासी दशरथ। मेहनत-मजूरी कर अपने परिवार का पेट भरता था। उसका विवाह फालगुनी के साथ हुआ था। पत्नी से ठीक वैसी मुहब्बत। जैसे बादशाह अकबर मुमताज से करते थे। पहले बेटा हुआ। फिर जब बेटी होने को आई तो बड़ी घटना घटी। 
फालगुनी एक दिन। भोजन और पानी लेकर। दशरथ के लिए पहाड़ के एक संकरे रास्त को पार कर रही थी। अचानक पैर फिसला और गिर पड़ी। मटकी फूटी, भोजना छूटा और लहूलुहान हो गई। जब तक अस्पताल पहुंची। देर हो चुकी थी। अस्पताल पहाड़ी के दूसरी ओर करीब 70-75 किलोमीटर दूर था। 
दशरथ...! उसकी तो दुनिया लुट गई। काश..! यह पहाड़ बीच में न आता। शायद उसकी फालगुनी बच जाती। 
एक रात...! कुएं के समीप सोते समय। दशरथ को एक अजीब सा ख्याल आया। क्यों न इस पहाड़ को काट कर यहां सड़क बना दी जाए। 
अगली सुबह वह उठा। अपनी दो प्रिय बकरियों बेची दी। खरीदा-हथौड़ा और छेणी। 
गांव वालों ने तंज कसे-पगला गया है बेचारा...! पत्नी के वियोग में। लेकिन हां..! वह पागल ही तो था। जिसने 300 फुट ऊंचे पहाड़ को हथौड़ी छेणी से छेदनी की कल्पना की थी। 
दिन बीते...! महीने बीते और बरस बीते। बरस भी एक नहीं दो नहीं, तीन नहीं, चार नहीं..! पूरे 22 वर्ष। इन दो दशकों में दशरथ ने पहाड़ को झुका दिया। उसने दिन-रात कर हथौड़े छेणी से पहाड़ का सीना छलनी कर दिया। 
इस मांझी के जुनून के आगे पहाड़ ने हार मान ली। फिर एक दिन। वह भी आया जब गांव को सड़क निकाल दी। उसका नाम पड़ा.....माऊटैन मैन। यानि ‘पर्वत पुरूष’। पर्वत पुरूष ने अपनी शक्तिशाली भुजाओं से। उसने 55 किलोमीटर सफर को मात्र 15 किलोमीटर में बदल दिया। उसने 360 फीट लंबा, 25 फीट गहरा और 30 फीट चौड़ा मार्ग तैयार कर दुनिया को चकित कर दिया। 
भूख...! पहाड़ तोड़ने के वक्त वह कई बार भूखा भी रहा। किन्तु उसका संकल्प अडिग था। उसने पहाड़ की गुफा में रहकर। रात दिन काम करना शुरू कर दिया। और कई दफा वहीं घासफूस खाकर काम किया। 
इंदिरा गांधी...! एक बार दशरथ श्रीमती गांधी से मिलने। पटना से पैदल दिल्ली तक पहुंच गए थे। वह भी रेल ट्रक पर चलकर। 
माउंटेन मैन...! जब पहाड़ खोदना शुरू किया। उस समय उसकी उम्र करीब 22 वर्ष थी। जब सड़क का काम पूरा हुआ। तो उसकी उम्र थी 46 वर्ष। तपस्या देखिए। इस पुरूष की। या फिर कहें महापुरूष की। उसने अपनी गरीबी, निर्धनता और लोगों के तंज और तानों को कभी आड़े नहीं आने दिया। बस चलता ही रहा। अपनी डगर पर। उस डगर पर जिसका दूसरा छोर दिखाई नहीं देता था। पर मन में कामयाब होने का विश्वास था। 
प्रियेसी की तड़प में वर्ष 1960 में मांझी ने जो दुरूह कार्य शुरू किया था उसे 1982 में पूरा कर दिखाया। 
(माउंटैन मैनः सन 1934 -17 अगस्त 2007)