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पतंगबाजी

उत्तर भारत का एक मात्र शहर नाहन पतंगबाजी के लिए मशहूर है। रियासतकाल से ही नाहन में पतंग उड़ाने का खेल खेला जाता है। मुख्य रूप से पतंगबाजी नाहन में रक्षाबंधन के अवसर पर की जाती है। तेज संगीत और ढोल की थाप के बीच यहां पतंग उड़ाने की परम्परा रही है।

महाराजा सिरमौर शमशेर प्रकाश पतंगबाजी के शौकीन थे। मान्यता है कि उनके शासन काल में ही नाहन मंें पतंगबाजी आरम्भ हुई थी।

रक्षाबंधन से एक माह पूर्व नाहन में पतंगबाजी शुरू हो जाती है। पूर्व मंे शहर मंे हर उम्र के लोग भी पतंग उड़ाते थे। किन्तु वर्तमान में अधिकतर युवा और बच्चों तक ही यह खेल सीमिति रह गया है। आधुनिक युग में कंप्यूटर, टीवी और अन्य मनोरंजनात्मक खेलों के कारण पंतगबाजी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। पहले बच्चों को पतंग पकड़ने के लिए सड़कों पर दौड़ते हुए देखा जा सकता था।

पतंग की कड़क डोर तैयार करने के लिए आटा, कांच और रंगों को इस्तेमाल किया जाता था। वर्तमान में रेडिमेड डोर बाजार में उपलब्ध है। यही नहीं पतंग को उड़ाने के लिए महत्वपूर्ण चर्खा भी पहले होम मेड होता था। लकड़ी के दो पहियानुमी चक्कों पर बैरिंग लगाकर चरखा बनाया जाता है। किन्तु अब चाईनिज डोर और चर्खा बाजार में उपलब्ध है।

पहले पतंगों का आकार बड़ा ही विचित्र होता था। अब मौसम को देखते हुए प्लास्टिक के पतंग भी बनाए जा रहे हैं। एक जमाने में नाहन में भगवान दास के पतंग सबसे मशहूर हुआ करते थे। नाहन में कई लोगों की रोजी रोटी पतंगों पर निर्भर करती थी क्योंकि तब पतंग यहीं बनाए जाते थे। किन्तु अब पतंग रेडिमेड मिलते हैं और ज्यादातर पतंगों की सप्लाई सहारनपुर और गुजरात से होती है। 

रियासतकालीन परम्परा के अनुसार महाराज शमशेर प्रकाश उस व्यक्ति को पुरस्कृत करते थे जो महाराजा की पतंग काटता था।

लोग अपने घरों की छतों पर पतंगबाजी के अलावा नाहन के ऐतिहासिक चैगान में पतंगबाजी के लिए एकत्रित होते थे।

कहते हैं कि स्वर्गीय आर्टिसन अमरदराज द्वारा महाराजा के पतंग की डोर पोलिश की जाती थी।

उत्तर भारत में नाहन ही एक ऐसा स्थल है जहां सबसे ज्यादा पतंगबाजी होती थी। सबसे ज्यादा पतंग काटने वाले को ‘बानू’ की उपाधि दी जाती थी।

रक्षा बंधन आते-आते माता पिताओं की चिंताएं बढ़ जाती थी। छोटे लड़के पागलों की तरह कटी हुई पतंग को लूटने के लिए भगते थे। कई बार घर की छतों  से गिरने बच्चे चोटग्रस्त हो जाया करते थे। इस लिए कई घरों में माता पिता अपनी देखरेख में पतंग उड़वाते थे। मां बाप चाहते थे कि किसी तरह रक्षा बंधन आए और यह पतंगबाजी खत्म हो। कई बार तो पतंगबाजी जानलेवा भी हो जाया करती थी।

नाहन में जुलाई-अगस्त में ग्रीष्म अवकाश होता है। स्कूल काॅलेजों में छुटिटयां होने के कारण इन दिनों अधिकतर बच्चे पतंगबाजी का आनंद उठाते हैं।

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम, स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

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