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जहां भगवान श्रीराम के आगमन की सूचना एक माह बाद मिली’

सिरमौर जनपद...। अपने अनूठे रीति-रिवाजों, खान-पान, परम्पराओं और देव संस्कृति के लिए विख्यात है। ‘बूढ़ी दिवाली’ अर्थात अंधेरी दिवाली का पर्व भी। सिरमौर क्षेत्र में आयोजित होने वाले अनूठे त्योहारों में शामिल है।
‘मशराली’ पर्व के रूप में बूढ़ी दिवाली को सिरमौर जिला के गिरीपार के करीब 126 पंचायतों
में  परम्परागत ढंग से आयोजित किया जाता है। इस बार बूढ़ी दिवाली का पर्व मार्गशीष की अमावस्या यानि 18 नवम्बर को आयोजित किया जा रहा है। इसके लिए पूरे सिरमौर क्षेत्र में अभी से तैयारियां चल रही हैं।  
दीपावली और बूढ़ी दिवालीः दरअसल बूढ़ी दिवाली का पर्व। हिंदू संस्कृति और धर्म के अनुसार आयोजित होने वाली कार्तिक की अमावस्या ‘दीपावली’ के स्थान पर मर्गशीष अमावस्या के दिन मनाया जाता है। यानि दीपावली के बाद अगले माह आने वाली अमावस्या को इसका आयोजन होता है। 
सिरमौर में एक माह देर से पहुंची भगवान राम की खबरः कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम लंकापति रावण पर विजय हासिल करने के उपरांत आयोध्या लौटे। इस उपलक्ष्य में सभी आयोध्यावासियों ने दीप जलाए और खुशियां मनाई। सारे भारतखंड में दीपावली का त्यौहार एक ही दिन मनायाा गया। 
किन्तु...! ऐसा माना जाता है। भगवान श्रीराम के आयोध्या आगमन की सूचना। सिरमौर क्षेत्र के लोगों को एक माह देर से मिली। इसी वजह से सिरमौरवासियों ने दीपावली के अगले माह आने वाली अमावस्या के अवसर पर इस त्यौहार को पुनः आयोजित करने का निर्णय लिया जिसे बूढ़ी दिवाली कहा गया। 
बूढ़ी दीवाली-नाच-गान पर्वः बूढ़ी दीपावली पर्व। मुख्य दिवाली पर्व से थोड़ा हट कर आयोजित किया जाता है। यह पर्व तीन दिन तक आयोजित किया जाता है। इस मौके पर नाच-गान, नाटी, करियाला का आयोजन किया जाता है। कुछ स्थलों पर ठोडा नृत्य भी प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन ग्रामीण विरह गीत, भयूरी, रासा, नाटियां, स्वांग के साथ हुड़क नृत्य कर जश्न मनाते हैं। इसके अलावा कई गावों में कुछ समुदायों द्वारा आधी रात को ‘बूढ़ा नृत्य’ की परम्परा भी है। 
दीये के स्थान पर अलाव का प्रज्वलनः इस पर्व की विशेषता यह है कि जहां दीपावली पर दिये जलाए जाते हैं। वहीं इस पर्व में रात्रि के समय काष्ठ के अलाव यानि ‘घ्याने’ जलाने की परम्परा है। रात भर अग्नि प्रज्वलित होती है और इस दौरान खान-पान, गीत संगीत का जी भरकर आयोजन होता है।
खान पान का पर्व- बूढ़ी दिवाली के अवसर पर सिरमौर जिला में पारम्परिक व्यंजन बनाने और खिलाने की परम्परा है। सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली, अखरोट वितरित करके दिवाली की शुभकामनाएं भी दी जाती है। 
एक घर-एक बकरा- पूर्व में सिरमौर में बूढ़ी दिवाली के अवसर पर एक विशेष परम्परा का निर्वहन किया जाता रहा है। बूढ दिवाली से पूर्व आयोजित होने वाले सार्वजनिक/सामुदायिक भोज में ‘एक घर-एक बकरा’ की परम्परा थी। इस प्रकार इस पर्व पर पुराने समय से पशु बलि की प्रथा रही है। इस आयोजन मंे स्थानीय लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों को आमंत्रित करते हैं। 
यह बलि प्रथा कुछ गरीब लोगों के लिए आर्थिक रूप से भारी पड़ने लगी। इसलिए इस ‘एक घर-एक बकरा’ परम्परा के स्थान पर धन अंशदान की परम्परा आरम्भ की गई। दूसरी और न्यायालय के आदेश के बाद भी इस परम्परा में कमी देखने का मिली 
बहन-बेटियों का पर्वः यह पर्व बहन बेटियों की आव-भगत का पर्व भी है। इस दौरान बेटियों के साथ जमाइयों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। सिरमौर क्षेत्र में जमाईयों को विशेष महत्व दिया जाता है। बेटियों-जमाईयांे को अच्छे पकवान पकाकर परोसे जाते हैं। फिर उन्हें दक्षिणा/वस्त्र देकर अगले दिन विदा किया जाता है। इस प्रकार  प्रकार यह पर्व बहन-बेटियों का पर्व भी कहलाता है। 
आधुनिक युवाओं के लिए विचित्रः तीन दिन तक आयोजित होने वाला यह बूढ़ी दीपावली का पर्व। आज के आधुनिक युग में पले-बढ़े युवाओं और युवतियों के लिए बेशक विचित्र बात है। किन्तु यह हकीकत है कि सिरमौर जिला के कुछ भागों में दीपावली पर्व के ठीक एक माह के बाद की पहली अमावस्या को बूढ़ी दीवाली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
सिरमौर के अलावा बूढ़ी दिवालीः सिरमौर के गिरिपार के 126 पंचायत जिनमें शिलाई, राजगढ़ और संगड़ाह क्षेत्र शामिल हैं के अलावा उत्तराखंड के जौनसार, शिमला के ऊपरी भाग और कुल्लू जिला के आनी और निरमंड के कुछ स्थानों पर बढ़ूी दिवाली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यद्यपि इस पर्व के आयोजन की परम्परा सभी स्थलों पर एक जैसी है किन्तु कई स्थलों पर आंशिक बदलाव भी देखने को मिलता है।

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य] नाम] स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)
 

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