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अपनों की भेंट चढ़ा नाहन फाऊंडरी


नाहन फाऊंडरी ...! शहर के लोगों के लिए यह मात्र एक आयरन इंडस्ट्री नहीं थी। वरन यह नाहन क्षेत्र के लोगों की जीवन-संस्कृति का अटूट हिस्सा भी थी। परन्तु यह धरोहर उद्योग अपने ही लोगों की उदासीनता और राजनीति की भेंट चढ़ गया।
नाहन फाऊंडरी को उत्तर भारत का सबसे पुराना धरोहर उद्योग कहा जाता है। महाराजा सिरमौर शमशेर प्रकाश ने 1873 में औपचारिक रूप से नाहन में मार्डन फांउडरी वकर्स के नाम से एक उद्योग की स्थापना की थी।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार महाराजा शमशेर प्रकाश एक बार सन् 1860 में रूड़की के दौरे पर गए, जहां उन्होंने एक आयरन फांउडरी को देखा। महाराजा के मन में भी सिरमौर में एक फाउंडरी स्थापित करने का भाव जागृत हुआ। महाराज ने अपनी रियासत के कुछ कुशल कारीगरों को टेªनिंग के लिए रूड़की भेजा। इनके प्रशिक्षण के उपरांत सिरमौर रियासत की राजधानी नाहन में फांउडरी की स्थापना की गई।
कहते हैं सन् 1904 में यहां करीब 9000 कर्मचारी कार्यरत थे। 
नाहन फाउंडरी में सर्वप्रथम गन्ना पिराई की मशीन तैयार की जाती थी। इसके बाद यहां पर अन्य प्रकार के लोहे के उत्पाद जिसमें रेलिंग, ग्रिलें, बेंच लेग्स, मैनहोल कवर, सॉयल पाईप, पानी के टेंक, कृषि संयत्र जैसे थ्रेशर, बिजली की मोटर आदि बनाए जाने लगे। 
नाहन में बनने वाले ‘ईमाम दस्ते’ आज भी लोगों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां के ईमाम दस्ते दूर-दूर फैले हुए हैं। 
शहर के बुद्धिजीवि मानते हैं कि नाहन की बहु-सांस्कृतिक विरासत की वजह यहां पर स्थापित नाहन फाउंडरी भी है। इस उद्योग में काम करने वालों में अग्रंेजों के अलावा हिन्दू और मुसलमान कारीगर कार्यरत थे। सिरमौर के अलावा, सहारनपुर, रूड़की, मेरठ, अंबाला और अधिकतर पूरब के लोग शामिल थे। 
नाहन फाउंडरी ने शहर और इसके आसपास के कई परिवारों को रोजगार उपलब्ध करवाया है। कई परिवारों का गुजर बसर इस फांउडरी पर निर्भर करती था। नाहन फांडरी की प्रातः 6 बजे बनजे वाली तीखी सीटी अत्यंत संगीतमय प्रतीत होती थी।
दुर्भाग्य से नाहन फांउडरी को सरकार चला नहीं पाई और इसे बंद करना पड़ा। इस फांउडरी को नये रूप में जीवित करने के लिए यद्यपि कई प्रयास हुए। किन्तु राजनीतिक ईच्छा शक्ति के अभाव में यह सिरे नहीं चढ़ सका। इस स्थल पर पॉलिटेक्निक कॉलेज आदि के बारे में चर्चा रही। किन्तु सब व्यर्थ।
नाहन फाउंडरी से लोगों की संवेदनाएं जुड़ी हुई है। फांउडरी के बंद होने का दर्द स्थानीय लोगों के दिलों में आज भी झलकता है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि किसी तरह इस पुराने उद्योग को जीवन दान दिया जाए। फिर चाहे यहां कोई तकनीकी कॉलेज ही क्यों न खोला जाए। 
फांउडरी की संपत्ति यूं ही वीरान पड़ी है। मशीनरियां जंग खा रही हैें।
काश...! इस धरोहर उद्योग को पुनः जीवनदान मिल पाता। 

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम, स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

 

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