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जाखू में रामू का प्रायश्चित (कहानी/कथा)

देवभूमि हिमाचल...!

शिमला के जाखू स्थित हनुमान मंदिर परिसर का नज़ारा आज कुछ बदला-बदला हुआ सा था। रामू अपनी टोली के साथ गहन विचार-विमर्श में डूबा हुआ था। समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।

पिछले दिनों हुए एक हादसे ने उसे अंदर तक हिला कर रख दिया था। वह जहां से गुजरता। लोग उसे ताने मारते थे। कल ही की बात है। उसके साथियों के कारण। शिमला के मिडल बाजार में एक महिला की छत से गिर कर मौत हुई थी। मीडिया ने तो जैसे इस खबर को भारत-पाक युद्ध के समाचार से भी बड़ा बना दिया था।

लाल झंडे वाली पार्टी को मानो संजीवनी मिल गई थी। महिला की मृत्यु उनके लिए वरदान बन गई थी। जैसे ईश्वर ने उनकी मुराद पूरी कर दी हो। उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए एक नया बहाना जो हाथ लग गया था। महिला की हादसे में मृत्यु के विरोध में डीसी आफिस का घेराव कर दिया गया। 

दोस्तो...! अब जन्म भूमि से बिछुड़ने का समय आ गया है। अब सभी, अपने भविष्य और अपने संतानों की चिंता करें। कहीं ऐसा न हो कि संभलने का मौका तक न मिलेकृ....।’’ रामू ने उदास होकर कहा।

दादा... हैरानी की बात है कि इंसानों ने पहले हमें जंगलों से शहरों की ओर खदेड़ा, आज शहरों से जंगलों की ओर खदेड़ा जा रहा है। और आज तो हमें देश से बाहर भेजने की बात चल रही है।रामू के दोस्त भोलू ने कहा।

युवा डोनी बीच में बोल पड़ा-

अच्छा है...! यहां से अब चला जाए। थोड़ा बाहर दूसरे देश की सैर भी सैर हो जाएगी। यहां के लोग वैसे भी हमें देखकर लाठी, पत्थर और हाथ में जो आता है उसे उठा लेते हैं। हमारे छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शते। चलो इस बहाने थोड़ी मौज मस्ती का टाईम तो मिलेगा और फिर अपने घर लौट आएंगे।

तुम... तुम मूर्ख हो..! ना समझ हो। तुम दोबारा यहां कभी नहीं आ पाओगे। जानते हो सरकार क्या करने वाली हैै। हमें एक्सपोर्ट करने का मतलब है हमारी जान लेकर, हमारे शरीर के सारे अंगों और हमारे रक्त का इस्तेमाल इंसानों को जीवन देने के लिए किया जाएगा। मरने के बाद तुम खाक अपने घर वापिस लौटोगेरामू ने चिल्ला कर कहा।

डोनी सन्न रह गया।

 ‘क्या...? वहां हमें मरने के लिए भेजा जा रहा है। क्या हमारे शरीर से दिल, गुर्दा, आंखे, कान और नाक निकालकर उसका मेडिकल परीक्षण किया जाएगा। नहीं-नहीं मैं विदेश नहीं जाउंगा।

अब कुछ होने वाला नहीं है। पहले हम पर आरोप थे कि हमने किसानांे की फसलें उजाड़ दी हैं। फिर हम पर आरोप लगा कि हम इंसानों को काटते हैं। लेकिन इस बार आरोप गंभीर हैं। हमारे ऊपर एक महिला की हत्या का आरोप मढ़ा गया है।

कहते हैं कि हमारी वजह से उसके बच्चे अनाथ हो गए हैं। अब सीधे मौत की सजा मिलने वाली है...।रामू ने उदास स्वर में कहा।

तभी भोलू ने रामू की ओर आशा भरी नजरांे से देखते हुए कहा-

दादा अब आप ही बताइये...! अपने पूर्वजों की इस भूमि को छोड़कर हम जाएं भी तो कहां?’

फिर भोलु ने हनुमान जी की प्रतिमा की ओर दुखी नजरों से देखते हुए कहा....

पत्थर की इस मूर्ति के सामने लोग रोज नाक रगड़ते हैं, रोज यहां पूजा पाठ का ढोंग करते हैं। लेकिन हम जिंदा शरीर को फटकारते हैं। यह सब छलावा नहीं तो और क्या है?’ 

भाई...! इसमें हमारा भी तो दोष है। हमने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इंसानों पर भरोसा करना जो शुरू कर दिया था। अब भुगतना तो पड़ेगा ही। पहले हम जंगलों में खुश थे। बारिश, हवा पानी, सब प्राकृतिक था।

किन्तु अब... रोटी, ब्रेड, मक्खन, केले, चने, गुड़ खाने की आदत पड़ गई है। बारिश-घाम-आंधी से बचने के लिए बहुमंजिला भवनों की छतों का ओट। अब हमसे जंगलों में जिया नहीं जाएगा।रामू अपने टोले को जैसे नसीहत दे रहे थे।

भोलू खीज कर बोला-

दादा... हम अपने आप थोड़े ही शहर आए थे। लोग हमें जंगल से शहर लेकर आए। पहले लोगों ने जंगलों की अंधाधुध कटाई की... जिसके कारण हमारा भोजन और आवास खत्म हो गए। फिर किसानों ने प्राकृतिक फसलों के स्थान पर पैसा उगाने वाली फसलों को बोना शुरू कर दिया।

थोड़ा ठहर कर भोलू फिर बोला-

फिर उसके बाद....! अपनी खुशहाली और अपना स्वास्थ्य दुरूस्त करने के लिए। ग्रहों की शांति के नाम पर हमें गुड़-चने और ब्रेड-रोटी खिलाने लगे। क्या यह इंसान की गलती नहीं है .... उसने जंगली फल-फूल खाने वालों को गुड़ और चने की लत लगा दी?’

भाई अब तुम क्यों पिछली बातों को याद करते हो। जरूरत अब आगे की सोचने की है। जरा सोचो, अपने लोगों का तो अब, नामोनिशान ही मिट जाएगा। हमारे वंश का कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा। जाखू में हमारे प्रतीक के रूप में केवल हनुमानजी की ही प्रतिमा खड़ी रहेगी।रामू बोला।  

डोनी ने फिर कहा-

मैं यहां से कहीं दूर भाग जाऊंगा। जहां न सरकार होगी, न पुलिस और न ही पिंजड़ा।

हम कहीं नहीं जाने वाले....जाएंगे तो ये इंसान। हम इतना कोहराम मचा देंगे कि इंसान शहर छोड़कर जंगल की तरफ भागने को मजबूर हो जाएगा। डोनी की मां ने झुंझलाते हुए कहा। 

रामू ने डांटते हुए कहा-

क्यों बच्चों जैसी बातें करते हो। हमारा धर्म और हमारे संस्कार... इंसान को सताना नहीं है। ईश्वर ने हमें इस खूबसूरत जहान में इसंान से लड़ने के लिए नहीं भेजा है। वीर हनुमान की तरह हमें रामभक्तों की सहायता करने भेजा गया है।

रामू दादा ठीक कहते हैं, भोलू बोला।

मानवजाति से टकराव ठीक नहीं है। यदि इंसान नही होंगे तो हमें कौन पूछेगा। अब सवाल उठता है कि इस विकट घड़ी में क्या किया जाए। क्या हम सब मिलकर सरकार के पास फरियाद लेकर जाएं कि हमने उस महिला जानकीको नहीं मारा। हम निर्दोष हैं। हमारी छोटी-छोटी गलतियों की इतनी बड़ी सजा मत दो। हम अपनी जन्म भूमि छोड़कर कहां जाएं।

अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है। इंसान हमारी बात नहीं मानने वाले। कहते हैं राजा साहबतक बात पहुंच चुकी है। महिला की मृत्यु के उपरांत उनका भी मन बदल गया है। काफी समय तक उन्होंने हमारी शरारतों को नजरअंदाज कर रखा था। लेकिन अब उन पर भी दबाव है।

मीडिया मीडिया लगातार हमारे खिलाफ खबरें उछाल रहा है। उस पर मानवाधिकार आयोग। अपना तो कोई आयोग नहीं बना है जहां जाकर अपनी फरियाद सुनाएं...’’ रामू बोला

इसी बीच डोनी की मां सिसकते हुए बोली-

मैंने अपने बच्चें को आधा पेट खिलाकर पाला है। कहीं केले का छिलका। कहीं सड़ा हुआ सेब और कूड़ेदान में पड़ी रोटी। मुझे पता है मैंने अपने वंश की बेल को कैसे आगे बढ़ाया है।

फिर उखडते हुए बोली-

यदि हमने कूड़ेदान में पड़ी रोटी खा भी ली तो इंसान का क्या घिस गया। वह तो अब रोटी को भी कूड़ेदान की चीज समझता है।

डोनी की दादी कहती थी जब हम परिवार सहित जंगल में रहते थे तो भरपेट भोजन बच्चों और सभी को मिलता था। फिक्स मेन्यू भी नहीं था। जिसे जो चाहे खा सकता था। बच्चों को खेलने-कूदने के लिए जगह की कमी नहीं थी। सारा जंगल खेल का मैदान था। इस पेड़ से उस पेड़। कोई पाबंदी नहीं।

फिर रूक कर बोली-

लेकिन अब देखो...! लोग हमें मिडल बाजार से लोअर बाजार, लकड़ बाजार से संजौली। कृष्णा नगर से विकासनगर खदेड़ते रहते हैं। और सचिवालय में तो घुसने तक नहीं देते। थोड़ी शांति जाखू मंे मिलती थी। अब वहां भी हर कोई मारने को दौड़ता है। यूं बाजार-बाजार घूमते हम बाजारी से हो गए है।

अरे तुम लोग क्यों व्यर्थ में बहस करते हो। बेकार की बातों में वक्त जाया मत करो। सोचो कैसे इस महामारी से बचा जाए। थोड़े दिनों बाद विधानसभा बैठने वाली है।

कहते हैं कोई बिल लाने की तैयारी चल रही है। हमारे विरोधी अफसर रात-रात भर बैठकर कोई कागज तैयार कर रहे हैं। अब ऊपर वाला ही जाने हमारा क्या होगा। लेकिन प्रयास तो करने ही होंगे...’’ रामू ने टोले को मुददे की बात पर चर्चा करने के लिए आगाह किया।

अरे दादा...! आप भी क्या ऊपर वाले की बात करते हो, भोलु ने कहा।

हमारे उपर वाले तो रामभक्त वीर हनुमान ही हैं। जब उनके चरणों मंे भी हम सुरक्षित नहीं हैं तो कौन हमारी मदद करेगा।

अरे कोई मेनका गांधी भी तो है। कहते हैं हम जैसे कितने ही लोगों के लिए वह सरकार और कोर्ट तक से भिड़ गई। उसने कइयों की जान बचाई है। क्यों न एक डेपुटेशन लेकर उनके पास दिल्ली जाया जाए। डोनी की मां ने मुसीबत की इस घड़ी में पर्यावरणविद मेनका गांधी की याद दिलाई।

अरे दिल्ली! इतनी दूर! वहां जाकर मरना है क्या। पहले ही दिल्ली वाले हमारे लोगों के पीछे लंगूर लिए घूम रहे हैं। हमारी वहां कौन सुनेगा। रामू ने आश्चर्य जताते हुए कहा।

तो क्या... प्रधानमंत्री से अपने मन की बात की जाए। उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। कहते हैं उन्होंने गंगा मैया का उद्धार करने की ठानी है। और सेतु समुद्रम को टूटने से भी बचा लिया है। भोलू सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंच गया।

 यूं ही घंटों बहस चलती रही। लेकिन समाधान नहीं निकल पाया।

इसी बीच रामू दादा उदास होकर बोला-

मेरे पास एक उपचार है.. इस मर्ज का..!

सभी उसकी ओर आशा भरी नजरों से ताकने लगे। सभी ने सोचा। सबसे बुजुर्ग है रामू, कोई तो चमत्कार करेगा।

मैं यूं सोच रहा था कि आत्म......। रामू दादा फिर रूक कर बोला...मेरा मतलब है कि हम सब सामूहिक आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते। सभी समस्याओं का अंत हो जाएगा...’’ 

रामू दादा ने लंबी सांसें भरकर फिर बोलना शुरू किया-

इंसान भी तो यही कर रहा है। कभी कर्ज के लिए तो कभी मर्ज के लिए।

माहौल में जैसे एकदम सन्नाटा छा गया। दादा ने यह क्या कह दिया। सामूहिक आत्महत्या...! यह कैसे कर सकते हैं। हम इंसानों की तरह कायर थोड़े ही हैं। नहीं-नहीं यह तो सरासर समुदाय का अपमान होगा। हमारे पूर्वज क्या कहेंगे। थोड़ी सी मुसीबत क्या पड़ी जान देने की सोच ली। नहीं हम किसी भी सूरत में ऐसा नहीं करेंगे।... सबने मिलकर कहा।

रामू गुस्से में बोला-

अरे...! जन्म भूमि छोड़ने से तो अच्छा है यहां सर पटक-पटक कर अपनी जान दे दें। वरना हमारी आने वाली नस्ले हमें कोसेंगी। कहेंगी डर के मारे भाग खड़े हुए, अपनी जन्म भूमि से।

कहीं बीच से एक आवाज सुनाई दी......जे़हाद...! यह आवाज एक युवा लालू की थी।

हम इंसानों के साथ संघर्ष करेंगे। ...हम जेहाद करेंगे। अपने लिए स्वतंत्र वतन नहीं तो क्या, अपने लिए अलग से आरक्षित क्षेत्र की मांग तो कर ही सकते हैं। उसके लिए चाहे हममें कितना बडा़ बलिदान ही क्यों न देना पड़े।

रामू दादा का दिल मानो बैठ सा गया। यह कैसा विचार उपजा इस मर्ज का। 

बूढ़ी काया में दम भरकर रामू दादा जोर से चिल्लाया ...

अरे मूर्खों...! यह कैसा विचार है। पहले ही हिन्दुस्तान जल रहा है। कभी धर्म के नाम पर तो कभी संप्रदाय के नाम पर। पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर काश्मीर तक अलगाववाद और आतंकवाद पनप रहा है। पड़ोस का देश पाकिस्तान सीमा पर बम फोड़ रहा है। ऐसे में अपने लिए शिमला से अलग राज्य की मांग उठाना राष्ट्रहित में सही नहीं होगा। लोग हमें स्वार्थी, अलगाववादी और यहां तक कि देशद्रोही कहेंगे।

तुमने भारत-पाक विभाजन का दर्द नहीं देखा। कितने बूढ़े इंसानों और कितने ही बच्चों की बेवजह मौत हुई थी। कितनी महिलाओं की इज्जत और अस्मत लूटी गई थी। कितनों के घर उजड़े थे। चारों और भूख ही भूख थी, नफरत ही नफरत थी। लोग एक दूसरे की जान के प्यासे हो गए थे। आज तक विभाजन के जख्म हरे हैं।

रामू दादा का गुस्सा देख अचानक सभी खामोश हो गए।

जाखू में चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। सुबह से शाम होने को आई थी लेकिन नतीजा सीफर। परन्तु आज निर्णायक कदम उठाना अत्यंत जरूरी था। नहीं तो फिर दोबारा इस पवित्र देवभूमि पर एकत्रित होने का शायद ही मौका मिले।

कुछ पल सुस्ताने के बाद फिर इस गंभीर जनलेवा हो सकने वाली समस्या पर बहस शुरू हो गई। लेकिन बहस का कोई नतीजा निकल ही नहीं पा रहा था।

अचानक रामू दादा ने खड़े होकर कहा-

ठीक है... मैं... अब इस सभा को यहीं पर समाप्त करता हूं। इस टोली का मुखिया होने के नाते, आप सबको मैं यह अधिकार देता हूं कि आप अपने-अपने बच्चों के भविष्य के लिए जो भी ठीक समझें करें। चाहें तो आप पुनः जंगलों में जाकर नया जीवन जीने का प्रयास करें, चाहें तो आप इंसानों से बैर मोल ले सकते है। और आप चाहें तो विदेश घुमने की तैयारी कर सकते हैं....’’

थोड़ी देर ठहरकर रामू दादा ने फिर कहा-

मैं अपना निर्णय आप सबको सुना देता हूं। मैं उस महिला जानकीकी मौत की जिम्मेदारी लेता हूं। इसीलिए मैं अपने और अपने कुल के पापों का प्रायश्चित करूंगा।’ 

हे... राम कहते हुए..! रामू ने पूरी शक्ति एकत्रित कर, अपने जीवन की अंतिम छलांग लगाई।

पास से गुजरती बिजली की हाई वोल्टेज तारों में अपने आपको समाते हुए आखिरी बार उसके मुख से... हे...राम निकला।

 करंट के जबरदस्त झटके के साथ रामू का झुलसा हुआ मृत शरीर हनुमान जी की प्रतिमा के पास उनके ही चरणों पर गिर पड़ा। मानो रामू, रामभक्त से अपनी गल्तियों की माफी मांग रहे हों।

अचानक वहां लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया।

दूर खड़े रामू के टोले में से किसी ने भी रामू के मृत देह तक पहुंचने की कोशिश नहीं की।

फिर अगले दिन मीडिया की सुर्खियां थी... वानरों की आपसी जंग में एक बूढ़े वानर की बिजली का करंट लग कर मौत। वानरांे ने शहर में कोहराम मचाया... शिमला के लोग दहशत में...।

धार्मिक आस्थाआंे के बावजूद क्या वानरों के उत्पात से निपटने के लिए सरकार कड़े पग उठा पाएगी...। क्या कोई राजनीतिक दल वानरों के उत्पात को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल करेगा..’’

 

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