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हाथी कब्र-यहां संतान के स्वास्थ्य की कामना करते हैं

 

हिंदू धर्म ग्रंथों...! मान्यताओं के अनुसार शिव-गौरी पुत्र श्रीगणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पिता-पुत्र में छिड़ी जंग के परिणाम स्वरूप भोलेनाथ ने क्रोध में अपने ही पुत्र का ही सिर काट लिया। माता गौरी के विलाप करने पर भगवान शिव के आदेश पर ही गौरीपुत्र गणेश को गज का मस्तक लगाकर पुनः जीवित किया गया और तब से ही उनका नाम गजानन पड़ा। 
हाथी कब्र...! जिस प्रकार संत-महात्माओं और ऋषियों-मुनियों के ब्रहमलीन अर्थात समाधि स्थल को अराधना स्थल के रूप में पूजा जाता है। ठीक उसी प्रकार नाहन में भी महाराज सिरमौर और बच्चों के प्रिय गजराज को ‘हाथी कब्र’ नामक स्थल पर पूजा जाता है। 
नाहन के रियासतकालीन एवं प्राचीन अवशेषों में से हाथी कब्र भी एक अवशेष बचा हुआ है। नाहन-शिमला मार्ग पर सीजेएम निवास के समीय स्थित है हाथी कब्र है। 
महाराजा सिरमौर का प्रिय गजराज पूरे शहर में लोकप्रिय था। ब्रिजराज नाम से विख्यात ये गजराज पूरे शहर के लोगों विशेष कर बच्चों के अति प्रिय थे। शहर के बच्चों को अक्सर गजराज की सवारी का मौका दिया जाता था। 
अक्सर गजराज अपनी पीठ पर मिठाइयां लादे शहर भ्रमण पर निकलते थे। करीब 11 फुट और 9 इंच कद के विशाल गजराज से उस जमाने में नाहन के आसपास स्थित जंगल के शेर आदि जानवर भी भय खाते थे। 
गजराज, बच्चों के अत्यंत प्रिय थे। बच्चों से उनक मित्रवत व्यवहार था और वे बच्चों के रक्षक के रूप में सामने आए।
कहते हैं गजराज की मृत्यु पर महाराज सिरमौर शोकग्रस्त थे। गजराज की अकस्मात मृत्यु महाराज और शहरवासियों खासकर बच्चों के लिए अत्यंत पीड़ादायक थी। स्नेह-वश महाराज ने अपने प्रिय गजराज को सम्मान सहित दफनाने का निर्णय लिया। 
आज भी यह स्थल शहर के एक कौने में धामिक आस्थाओं का प्रतीक बन कर खड़ा है जहां शहर के लोग अपने बीमार बच्चों के स्वास्थ्य की कामना लेकर मन्नते मांगते आते हैं। 
बच्चों के बीमार पड़ने पर। कई लोग गजराज की कब्र पर आते हैं। यहां अपनी संतानों के स्वास्थ्य की कामना करते हैं। 
यह हमारी आस्था है। या फिर गजराज का बच्चों के प्रति स्नेह है। अपनी मृत्यु के उपरांत भी गजराज बच्चों के दुखों को हरते हैं। 
यहां आने वाले अधिकतर याचकों में चमड़ी के रोगों से निजात पाने वाले लोग शामिल हैं। चमड़ी के रोगों मेें शरीर में होने वाले मस्से से निजाता पाना भी शामिल है। कहते हैं कि कब्र स्थल पर आकर यदि यह कामना की जाए कि ‘चर्म रोग दूर होने पर मैं गुड़ की भेली और नमक प्रसााद के रूप में अर्पित करूंगा’ तो निश्चित तौर पर यह संकल्प पूरा होता है। 
इस प्रकार सिरमौर जिला मुख्यालय के ऐतिहासिक शहर नाहन में पिछले 100 वर्षों से भी अधिक समय से गजराज की कब्र, एक अराधना स्थल के रूप में आज भी हमारी धार्मिक आस्थाओं और मान्यताओं का सशक्त प्रतीक बन कर खड़ी है। 

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य] नाम] स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

 

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