91-8894689279 info@mysirmaur.com

भगवान जगन्नाथ मंदिर

‘‘नीम वृक्ष से बनती है श्रीजगन्नाथ की मूर्ति’’
 
नाहन, सिरमौर जिले का मुख्यालय होने के साथ ही अदभुत और ऐतिहासिक शहर है। मां दुर्गा और श्रीविष्णु यहां साक्षात वास करते है। देवालयों के प्रति जनसमूह की आस्था अगाध और अटूट है। शहर में स्थापित अन्य देवालयों के साथ कलिस्थान मंदिर और जगन्नाथ मंदिर शहर की पहचान ही नहीं अपितु आत्मा भी हैं। इन दिव्य देवालयों के बिना नाहन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
श्रीकृष्ण भगवान उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में श्रीजगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रूप में यहां साक्षात विद्यमान हैं। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक शहर नाहन में भी भगवान जगन्नाथ इसी रूप में विराजमान हैं।   
‘जगन्नाथ मंदिर की स्थापना’
महान तपस्वी बाबा बनवारी दास ने नाहन बसाया था। उन्होंने सन 1681 में जगन्नाथ पूरी की तर्ज पर शहर के बड़ा चैक में भगवान जग्गनाथ मंदिर की स्थापना की थी। प्रचलित लोकगाथा के अनुसार नटनी के शाप से सिरमौर रियासत गर्क हो गई थी। बाद में नाहन में सिरमौर रियासत के मुख्यालय की स्थापना की गई थी। बाबा बनवारी दास ने ही 1622 में नाहन में राजा कर्म प्रकाश को आबादी बसाने की इजाजत दी थी। तपस्वी बाबा बनवारी दास ने नाहन स्थित प्राचीन कालिस्थान मंदिर में माता काली की घोर तपस्या की थी।
सन 1671 में ही बाबा बनवारी दास के आदेश पर नाहन में नगर खेड़ा महाराज का सुंदर मंदिर स्थापित किया गया था। इसकी प्रतिष्ठा भी जगन्नाथ मंदिर में की गई थी। 
उधर, इतिहासकारों के अनुसार पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्विमन ने 10वीं शताब्दी मंे करवाया था। पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर को हिंदू मान्यताओं के अनुसार चार धामों में से एक माना गया है। 
 
‘भगवान जगन्नाथ की मूर्ति नीम के वृक्ष से बनती है’
शायद बहुत कम लोग जानते हैं। भगवान जग्गनाथ की मूर्ति नीम के वृक्ष ‘दारू ब्रहम’ से बनाई जाती है। 
प्राचीन परम्परा के अनुसार भगवान जगन्नाथ की काष्ठ की मूर्ति 12 वर्षों के बाद नई बनाई जाती है। इस प्रकार भगवान 12 वर्षों के बाद नया शरीर धारण करते हैं। नव शरीर धारण को नबकलेवर कहा जाता है। नब मतलब नया और कलेबर मतलब शरीर। मान्यता है कि नीम का वृक्ष 10 पीढि़यों के उपरांत पीपल के समान पवित्र हो जाता है। पुरी में प्रचलित परम्परा के अनुसार नई मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत भगवान की पुरानी मूर्ति को कोईली बैकुंठ में समा दिया जाता है।  
नाहन स्थित जगन्नाथ भगवान की नीम काष्ठ से निर्मित प्राचीन मूर्ति आज भी गर्भ गृह में सुरक्षित बताई जाती है। गत वर्ष ही मंदिर में जगन्नाथ पुरी से नीम की नई मूर्ति लाकर स्थापित की गई हैं 
‘रथयात्रा निकालने का आइडिया’
नाहन में भगवान जग्गनाथ सदियों से विराजमान हैं। शहर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने का आइडिया नाहन के एक सज्जन गौरव अग्रवाल के मन में आया। उन्होंने मन में विचार किया कि क्यों न जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर ऐतिहासिक नाहन शहर में भी भगवान की रथयात्रा निकाली जाए। उन्होंने इस बारे में अपने कुछ मित्रों से बात की। उन्हें नीतिश गुप्ता और मनीष गर्ग का साथ मिला। 
इसी प्रकार आशीष सिंगला, पियुष गर्ग, सौरव गर्ग, संदीप गुप्ता, मनीष लोईया और गौरव अग्रवाल के साथ जुड़ने से एक समूह का गठन हो गया। श्री प्रकाश बंसल को आयोजन प्रमुख बनाया गया। फिर देखते ही देखते वह दिन भी आया जब भगवान जगन्नाथ अपने रथ पर सवार होकर पहली बार नगर भ्रमण के लिए निकले। 28 जून 2009 को नाहन में प्रथम जगन्नाथ रथयात्रा निकाली गई। 
‘सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल बनी रथयात्रा’
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा ने एक बार फिर से सिद्ध कर दिया कि नाहन में जबरदस्त सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल है। रियासतकाल से लेकर आजादी के समय तक शहर में सांप्रदायिक माहौल कभी खराब नहीं हुआ। भारत-पाक विभाजन के समय जब देश में सांप्रदायिक दंगे हुए, तब भी नाहन शहर के मुस्लिम और हिंदू भाई बंधुत्व की अटूट भावना से बंधे रहे। 
इस वर्ष .... को आयोजित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होकर मुस्लिम और सिख भाईयों ने इस आयोजन को एक नई परिभाषा देते हुए सिद्ध कर दिया कि ईश्वर एक है बेशक उसके रूप अनेक हैं।
कृपया रेटिंग दें :