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‘यहां कई सालों से महादेव नहीं मिले अपनी बहन देवी देही से’

सिरमौर जिले का पच्छाद जनपद। यहां कई सालों से भूर्शिंग देवता अपनी बहन देवी देही से नहीं मिले हैं। मंदिर कमेटी और देवता के पुजारी के परिवार के बीच उपजे भ्रम का का असर। इस क्षेत्र की देव परम्परा पर पड़ रहा है। यहां हर वर्ष भाई भूरेश्वर देवता और बहन देवी देही के मिलन पर्व के रूप में। दो दिवसीय मेले का आयोजन तो होता है। किन्तु यह पर्व परम्परागत देव मिलन’ आयोजन के बिना अधूरा है। 
भूरेश्वर महादेव...! इनका अपनी बहन ‘देवी देही’ से दिव्य मिलन। एक प्राचीन परम्परा रही है। उधर, भगवान श्री परशुराम अपनी माता श्री रेणुका से मिले। इधर भूर्शिंग देवता अपनी बहन देवी देही रू-ब-रू नहीं हो पाए। इस प्रकार सिरमौर जनपद में 9-10 नवम्बर (ग्यास पर्व) की तिथि। देव मिलन का अनूठा और पवित्र दिन रहा। 
भूरेश्वर देवता मंदिरः कुमारहटटी-सराहां मार्ग पर क्वागधार की खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित है। भूर्शिंग देवता का मंदिर। स्थानीय लोग इन्हें भूरेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। इस क्षेत्र में भूर्शिंग देवता शक्तिशाली अराध्य के रूप में पूजे जाते हैं। यह मंदिर अत्यंत खूबसूरत स्थल पर स्थित है। यहां से चूड़धार और मैदानी भागों में चंडीगढ़ और मोरनी इत्यादि का क्षेत्र दृष्टिगोचर होता है। 
बहन भाई का मिलन पर्वः भूर्शिंग देवता और उनकी बहन देवी देही के मिलन पर्व। माना जाता है कि वर्ष में एक बार भूर्शिंग देवता अपनी बहन देवी देही से भेंट करते हैं। इस उपलक्ष्य मंे वर्षो से यहां दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। पहले पजैली गांव से देव स्थल तक शोभा यात्रा निकली थी। विशेष पूजा अर्चना की जाती थी। किन्तु कुछ वर्षो से इस परम्परा का निर्वहन नहीं किया जा रहा है। माना जाता है कि मंदिर प्रबन्धन कमेटी और मंदिर के पुजारी के बीच भ्रम की स्थिति के कारण भाई बहन का मिलन नहीं हो पा रहा है।
पवित्र शिला पर फिसलते हैं देवगुरः  भूर्शिंग देवस्थल की सबसे अदभुत और चमत्कारी घटना। यहां पवित्र शिला पर देवगुर के फिसलने और नृत्य की मानी जाती है। कहते हैं प्राचीन समय से ही यहां दूध-घी से लथपथ। इस पवित्र शिला पर देव के गुर नाचते हैं। देवता के नृत्य के समय सारे गांव की रोशनी बंद कर दी जाती थी।  
इस पवित्र चट्टान के नीचे सैंकड़ो फीट तक ढांक है। साधारण मनुष्य के लिए इस शिला पर चढ़ना और नृत्य करना संभव ही नहीं है। इस कार्य को देवपुरूष अथवा देवगुर ही संपन्न कर सकता है।  
दो दिवसीय मेलाः मंदिर में हर वर्ष। दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार भी 9 और 10 नवम्बर को दो दिवसीय मेले का आयोजन हुआ। मेले में खेलकूद और दंगल प्रतियोगिता का आयोजन भी हुआ। सरांहा और आसपास के क्षेत्र के श्रद्धालु। भारी संख्या में भूर्शिंग देवता और उनकी बहन के दिव्य मिलन का गवाह बनने के लिए पहुंचे। यद्यपि वर्तमान में इस देव मिलन परम्परा की कड़ी काफी समय से टूटी हुई है। फिर भी लोगों का विश्वास है। इस दिन भूर्शिंग देवता अपनी बहन देवी देही से मिलते हैं। मेले के दौरान लोग ने जमकर खरीददार की। 
धार्मिक-पर्यटनः भूर्शिंग मंदिर को अर्की के लुटरू महादेव की तर्ज पर। धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने के प्रयास। काफी समय से किये जा रहे हैं। इसके अलावा इस खूबसूरत पहाड़ी से पैराग्लाईडिंग की संभावनाओं का पता लगाने पर विचार चल रहा है। पर ये प्रयास कब फलीभूत होंगे कहा नहीं जा सकता है।  
मेले के उदघाटन अवसर क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और योजना बोडऱ् के उपाध्यक्ष    श्री जी.आर. मुसाफिर कहते हैं- 
‘‘हमारा प्रयास भूर्शिग मंदिर परिसर को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना है। हम यहां पैरा-ग्लाईडिंग की संभावनाओं पर कार्य कर रहे हैं। ताकि अधिक से अधिक पर्यटकों को यहां आकर्षित किया जा सके।’’ 
मुसाफिर साहिब आगे कहते हैं -‘‘हम इस मंदिर को अर्की के लुटरू महादेव की तर्ज पर विकसित करने की संभावनाओं पर कार्य कर रहे हैं। ताकि यहां श्रद्धालुओं का आगमन बढ़ सके और इस पवित्र स्थल का अधिक प्रचार प्रसार हो सके।’’ 
सड़क की दशाः मंदिर को जाने वाले सड़क मार्ग की दशा वर्तमान में खराब है। इसे सुधारने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसके लिए एक डीपीआर तैयार की गई है। लेकिन इसमें अभी समय लग सकता है। तब तक श्रद्धालुओं को इसी सड़क से काम चलाना पड़ेगा। 
देवस्थल ‘सेल्फी प्वाइंट’ न जाएः भूर्शिंग महाराज का स्थल अत्यंत सुंदर और उंचाई पर बसा हुआ है। यहां गर्मियों और सर्दियों में बेहद खुशगवार मौसम रहता है। इस वजह से यहां आने वाले युवाओं और युवतियों की संख्या ज्यादा है। यहां से सिरमौर का चूड़धार के अलावा मैदानी भागों में सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
धार्मिक-पर्यटन के रूप में इस क्षेत्र के विकास का प्रयास अच्छा है। पर एक डर भी बना हुआ है। कहीं यह पवित्र देवस्थल ‘सेल्फी प्वाइंट’ न बनकर रह जाए। जिस प्रकार युवा वर्ग यहां के चट्टानों पर विभिन्न मुद्राओं मंे सेल्फी फोटो खींचते हुए दिखाई देते हैं। उससे इस देव परिसर की पवित्रता पर भी बुरा असर पड़ सकता है। 
नियमों-कायदों का पालन होः रेलवे में कार्यरत सिरमौरी गांव के सुरेन्द्र परमार। कहते हैं- ‘‘दरअसल हमारे देवालय श्रद्धा और आस्था का संगम है। यहां मनोरंजन और मौज-मस्ती के मूल में भी श्रद्धा भाव का होना जरूरी है। 
इस पवित्र देवस्थल की गरिमा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए। हमें कुछ नियमों-कायदों का पालन तो करना ही होगा। अन्यथा यह पवित्र स्थल अपवित्र हो सकता है और देव परम्परा को ठेस पहुंच सकती है।’’ 
स्थानीय नगाड़ा वादक के अनुसार- ‘‘सच्चे मन से जो कोई यहां कामना करता है, वह हमेशा पूरी होती है। इस स्थल पर दूध, घी और मक्खन चढ़ाया जाना चाहिए। किन्तु अब, युवक यहां प्रसाद चढ़ाते हैं। जिसके कारण यहां बंदर आने लगे हैं और इस स्थल पर बंदरों की भरमार है। जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी होती है।’’   
हे भूरेश्वर महादेव...! हे देव...! सबकी रक्षा करना...! 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य] नाम] स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)
 

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