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‘भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए जंगम’

जंगम...! आपने अपने द्वार पर। टल्ली बजाते हुए। एक भिक्षुक अर्थात जंगम बाबा को। अक्सर भगवान शिव का गुणगान करते हुए देखा-सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने प्रयास किया। वास्तव में ये कौन भिक्षु हैं। जो भगवान शिव की स्तुति कर, शांत चित्त से भिक्षा ग्रहण करते हैं। 
जंगम जहां हमें मनुष्य और समाज के नैतिक पतन पर सचेत करते हैं। वहीं ईश्वर की सत्ता का स्मरण भी करवाते हैं।  
जंगम संस्कृति-ः जंगम मुख्य रूप से शिव अर्थात शैव संप्रदाय के वो भिक्षु हैं जो शिव की स्तुति गान और भिक्षा के अलावा किसी और चीज की इच्छा नहीं रखते। जंगम के गीत में मुख्यतः भगवान शिव और मां पावर्ती विवाह की स्तुति रहती है। शिव ने माता गौरी को जो अमर कथा सुनाई थी। उसका सार भी इसमें रहता है। जंगम को भगवान शिव का कुल परोहित भी कहा जाता है। जंगम स्रोत का कोई लिखित इतिहास और ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। यह परम्परागत और जनश्रुतियों पर आधारित है। इसलिए कालांतर में जंगम प्रथा और इससे जुड़े समाज का सही आकलन नहीं हो पाया। 
जंगम परम्परा के अनुसार, परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को जंगम बनना ही पड़ता है। रोजगार के अन्य क्षेत्रों जैसे राजनीति, सरकारी नौकरी, व्यापार आदि में समाहित होने के बावजूद। वर्ष में एक बार परिवार के सदस्य को जंगम बनकर भिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है।
जंगमों का मूल स्थल हरियाणा का धर्मक्षेत्र, कुरूक्षेत्र माना गया है। 
जंगम परिधान: जंगमों का परिधान भारतीय अथवा हिंदू भक्ति संप्रदाय से सवर्था भिन्न हैं। उनके वस्त्रों में धर्म और परम्परा से जुड़ी कई चीजों का समावेश दिखाई पड़ता है। जंगम द्वारा धारण किये जाने वाले वस्त्रों में पांच ंिहंदू देवी अथवा देवताओं का प्रतिबिंब दिखाई देता है। उनके आभूषणें में माता पावर्ती के ‘कर्णफुल’ यानि कानों में डाला जाने वाला पीतल का आभूषण, भगवान विष्णु का प्रतीक ‘मोरपंखी मुकट’, भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की सेज ‘शेषनाग’, सृष्टि के रचियता ब्रहमा का ‘पवित्र जनेऊ’, भगवान शिव की सवारी नंदी के प्रतीक के रूप में ‘टल्ली’ अथवा घंटी।
संभवतः जंगमों का परम्परागत परिधान। समय और कालखंड में आए परिर्वतनों के बाद भी जस का तस बना हुआ है। 
जंगम उत्पत्ति-ः प्रचलित गाथा के अनुसार। जंगमों की उत्पत्ति उस समय हुई। जब भवगवान शंकर, पार्वती माता से विवाह उपरांत दान देना चाहते थे। किन्तु ब्रहमा और विष्णु भगवान ने भिक्षा ग्रहण से मना कर दिया। तब भगवान शिव ने जंगम को अपनी जांघ से उत्पन्न किया और उन्हंे अमरता का वरदान दिया। इसके साथ ही भोलेनाथ ने यह भी कहा कि जंगम केवल भिक्षा लेकर ही जीवन व्यतीत करेंगे। 
दूसरे मत के अनुसार भगवान शिव ने पावर्ती से विवाह के समय भिक्षा प्रदान करने के लिए दो संप्रदायों की उत्पत्ति की, पहला अपनी अपनी भृकुटि स्वेद से ‘जंगम’ दूसरा अपनी जांघ से ‘लिंगम’। इस प्रकार शैव संप्रदाय में जंगम की दो शाखाएं भी मानी जाती है। जंगम का उत्तर भारत तथा लिंगम का दक्षिण भारत में वास है।  
उत्तर भारत में वास करने वाले जंगमों की भाषा हरियाणवी है।   
अस्तुः ..! शिव भक्ति और भिक्षा में संतुष्टि ही, जंगम परम्परा की धरोहर है।