‘मीरा के प्रभु... दीनदयाल’
नाहन...! तेली मोहल्ला स्थित वर्मा निवास..! मैंने जैसे ही एक काले गेट के बाहर टंगी। कॉलबैल की घंटी बजाई। अंदर से एक चिर-परिचित मुस्कुराता हुआ चेहरा बाहर आया। मैंने दोनों हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया।
प्रत्यूत्तर में...! उन्होंने भी हाथ जोड़े और मुझे गले से लगा लिया। मैं प्यार और अपनत्व भरे इस स्वागत से रोमांचित हो उठा। मुझे ऐसे लगा जैसे कोई बड़ा भाई लंबे समय के बाद। अपने छोटे भाई से मिलने पर प्रफुल्लित हो उठा था। मैं अपनत्व भरे इस स्वागत से वशीभूत हो उठा। वे मुझे अपने ड्राईंग रूम तक ले गए।
इसी बीच उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज दी।
‘मीरा....! जरा पानी तो लाना।’
यह साहित्यकार, मिस्टर दीनदयाल वर्मा का घर था। साफ-सुथरा और एकदम खूबसूरत। हर चीज करीने से सजाई गई थी।
एक साहित्यकार....! रचनाशील और कल्पनाशील व्यक्ति का आवास जैसा होना चाहिए...? यह ठीक वैसा ही था।
दीन दयाल वर्मा नाहन में एक प्रसिद्ध और सुपरिचत चेहरा हैं।
एक व्यक्ति...! अनेक गुण...। या यूं कहें कि मल्टी टेलेंटिड पर्सन। साहित्य की दुनिया मंे ऐसे व्यक्ति को ‘हरफनमौला’ कहा जाता है।
प्रथम अक्तूबर 1955 को। शिमला के टूटीकंडी मंे जन्मे। साहित्यकार दीन दयाल वर्मा। पिता श्री बंसी लाल वर्मा और माता श्रीमती लीला वर्मा की होनहार संतान हैं।
डी.डी.वर्मा के नाम से मशहूर। श्री वर्मा सिरमौर ही नहीं पूरे प्रदेश में, साहित्य के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। उन्होंने कई साहित्यिक रचनाएं की। काव्य, कहानी, नाटक विधा में उनकी मजबूत पकड़ है।
जब कभी भी उन्हें समय मिलता है। वे साहित्य में खो जाते हैं। उनकी वाणी में हमेशा ही काव्य का पुट दिखाई देता है। फुर्सत के लम्हों में वे ‘कुकिंग’ के साथ गीत-संगीत का भी आनंद उठाते हैं।
‘गुरू दक्षिणा’ उनकी एक कालजेयी ‘नाटक’ रचना है। श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इसकी प्रशंसा की थी। इस नाटक का मंचन पंजाब कला मंदिर, गियेटी थियेटर, शिमला और दूसरे बड़े क्षेत्रीय मंचों पर हो चुका है।
‘मन के वन में’ उनका सुंदर काव्य संग्रह है। उन्होंने ‘तारिका’ और ‘शश्वत’ पत्रिका का संपादन भी किया।
‘20 साल बाद’ शीर्षक से उनका कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। उन्होंने कंडी प्रोजेक्ट पर वर्ष 1988 में इंग्लििश में बनी डाक्यूमेंटरी का हिंदी रूपांतर किया।
समाज सेवा की भावना और राजनीतिक शौक की वजह से। उन्हांेने सेवानिवृति से दो वर्ष पूर्व ही वर्ष 2012 में सरकारी सेवा को अलिवदा कह दिया था।
श्री वर्मा को कॉलेज के दिनों से ही राजनीति का शौक था। वर्ष 1977 में सिरमौर जिला भाजपा युवा मोर्चें के अध्यक्ष रहे।
शौक और नाहन क्षेत्र में। दशकों से तैर रही रानजीतिक उदासीनता और नकारात्मकता को दूर करने के लिए। उन्होंने वर्ष 1990 में नाहन विधानसभा चुनाव क्षेत्र से। चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। इस चुनाव में उन्होंने अप्रत्याशित रूप से 4500 मत हासिल किए।
इस चुनाव में उन्हें यद्यपि सफलता नहीं मिल पाई। लेकिन नाहन शहर के हर व्यक्ति की जुबान पर उनका नाम था। उन्होंने सिरमौर की राजनीति को हिला कर रख दिया था। शायद यह नाहन का एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाक्रम था। जिसका कालांतर में नाहन क्षेत्र की राजनीति पर गहरा असर दिखाई दिया।
एक निर्दलीय उम्मीदवार का साढ़े चार हजार के जादुई आंकड़े को छूना। नाहन जैसे महत्पूर्ण क्षेत्र के लिए बड़ी बात थी। और शायह यह नाहन का एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाक्रम भी थी। जिसका कालांतर में नाहन क्षेत्र की राजनीति पर गहरा असर दिखाई दिया।
एक बेटी के पिता, मिस्टर वर्मा कहते हैं-
‘‘बस...! अपने इस नाहन शहर के लिए। कुछ कर पाऊं तो अपने को खुशकिस्मत समझूंगा...!’’
मिसेज मीरा वर्मा...! मिस्टर वर्मा की पत्नी, उनके बारे में क्या कहूं...। मुझे उनमें श्रीकृष्ण की मीरा दिखाई दी। एकदम शांत चेहरे पर। हल्की मुस्कुराहट के साथ संतोष और समर्पण का भाव। शायद ये गुण ही। यथार्थ में किसी भी स्त्री को ‘मीरा’ बनाते हैं।