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कांवड़ परम्परा और इतिहास


बम-बम भोले....। जयकारों के उदघोष के बीच। हजारों-लाखों कांवड़िए हर साल श्रावण मास के अवसर पर। सैंकड़ों मील दूर। नंगे पांव पवित्र गंगा का जल लेने। इसलिए हरिद्वार पहुंचते हैं। ताकि अपने अराध्य देव। भगवान भोले-नाथ का जलाभिषेक कर उन्हें प्रसन्न कर सकें।   
भूख-प्यास की परवाह किए बिना..! मन में श्रद्धा और विश्वास का भाव लिए। भगवान शिव के भक्त ये कांवड़िये। कांवड़ में जल भरकर। जब अपने अराध्य ‘शिवलिंग’ का जलाभिषेक करते हैं। उस समय, उन्हें ऐसा प्रतीत होता है। मानो उन्हें कई जन्मों का पुण्य मिल गया हो। 
प्राचीन कांवड़ परम्परा....! कांवड़ परम्परा के बारे में कई तरह की गाथाएं/मान्यताएं प्रचलित है। कुछ का मानना है कि सबसे बड़े शिवभक्त ‘लंकापति रावण’ ने सबसे पहले अपने अराध्यम भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए। गंगा जल लाकर जलाभिषेक की परम्परा आरम्भ की थी। 
पुराणों के अनुसार..! समुद्र मंथन के उपरांत। निकले विष का पान भोलेनाथ ने किया था। विषपान के कारण ही भगवान शिव को नीलकंठ कहा गया। कहते हैं विष-पान करने के उपरांत। भगवान शिव का शरीर अग्नि के ताप से जलने लगा। देवतागण घबरा गए। उन्हें लगा कि उनके अराध्य के साथ कोई अनहोनी न हो जाए।  सभी देवताओं ने निर्णय किया। पवित्र गंगा का जल लाकर शिव पर डाला जाए। बस यहीं से शिव के जलाभिषेक की परम्परा शुरू हुई।  
तीसरे मत के अनुसार...! परम शिवभक्त भगवान परशु राम ने कांवड परम्परा आरम्भ की थी। कहते हैं भगवान परशु-राम। श्रावण माह के हर सोमवार को गंगा का जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते थे। 
शिव का जलाभिषेक क्यों...! कहते हैं श्रावण माह में गंगा से जल लाकर शिव-लिंग पर आर्पित करने से। भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। और कांवड़ियों को सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान देते हैं। 
दक्षिण में कांवड़ परम्परा...। उत्तर भारत की तरह। दक्षिण भारत में भी कांवड़ परम्परा है। तालिमनाडू में इसे ‘कावड़ी’ कहा जाता है। कावड़ी भगवान मुरूगन को अर्पित की जाती है। यहां भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की ‘मुरूगन भगवान’ के रूप पूजा की जाती है। कावड़ जलाभिषेक की यह परम्परा। विशेतः जनवरी माह के दौरान आयोजित की जाती है। 
कठोर कांवड़ नियम...! पुराने समय में जो भी शिव भक्त। कांवड़ यात्रा पर जाता था। उसे नियमों का कठिनाई से पालन करना होता था। इस नियम में पैदल चलना, कांवड़ को भूमि पर न रखना, स्वच्छता, शुद्धता और ब्रहमचार्य के पालन का नियम था। 
कांवड़ यात्रा एक समस्या भी...! वर्तमान में कांवड़ यात्रा एक समस्या के रूप में भी सामने आ रही है। जिस प्रकार हजारों लोग। विभिन्न स्थानों से आकर हरिद्वार पहुंच गंगा मैया का जल ग्रहण करते हैं। उससे कई प्रकार की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। ट्रेफिक व्यवस्था सबसे बड़ी समस्या बन रही है। इस यात्रा से स्थानीय लोग दिक्कत में हैं। यद्यपि कांवड़िये धर्म-कर्म से जुड़े शिव भक्त हैं। किन्तु भांग और भोले के नशे में। कई कांवड़यिं के अपराध में शामिल होने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
बहरहाल...। जो भी हो...! कांवड़ यात्रा, हिंदू राष्ट्र भारत की सबसे बड़ी। धार्मिक यात्रा का रूप ले रही है। इस यात्रा में कावंड़ियों की संख्या। दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आने वाले समय में। इसका और अधिक वृहद रूप हमें दिखाई देगा। परिणामस्वरूप शिव भक्तों की आस्था और विश्वास भी विस्तृत होती जाएगा।
जय भोले-नाथ...!