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‘‘जब चूड़धार में हुआ-आ बैल मुझे मार’’


चूड़धार...! धार्मिक आस्था के साथ ही। चूड़धार पीक की खूबसूरती। टेªकरों को भारी संख्या में, अपनी ओर आकर्षित करती है। हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, और दिल्ली आदि क्षेत्रों से टेªकिंग के शौकीन। यहां अपना शौक पूरा करने आते हैं। वर्तमान में युवाओं की टोलियां यहां टेªकिंग के साथ उन्मुक्त जीवन के लिए आती हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच अठखेलियां करते हैं। और सह-यात्रियों से मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं। 
लाला तुलसी राम चौहान...! बात 90 के दशक की है। मैं अपने मित्रों जिसमें सोलन के तत्कालीन एसडीएम अक्षय सूद, डीपीआरओ जगवीर सिंघा, भाई मान सिंह और वीरेन्द शामिल थे। चूड़धार की यात्रा पर निकला। हमने सोलन से नौहराधार तक की यात्रा सरकारी वाहन में तय की। रात्रि को हमें नौहराधार के जाने-माने व्यक्तित्व लाला तुलसी राम चौहान जी के घर पर ठहरने का मौका मिला। वहां पहाड़ी व्यंजनों से हमारा रात्रि भोज हुआ। सुबह की पहली किरण फूटते ही हम निकल पड़े। चूड़धार की यात्रा के लिए।
छिद्र में सिक्के...! हमने नौहराधार से चूड़धार और चूड़धार से नौहराधार की यात्रा एक दिन में ही तय की। सबसे पहले हमने चूड़धार पहुंचकर शिरगुल महाराज और प्राचीन शिवलिंग के दर्शन किए। उसके बाद हम सबसे उंचाई पर स्थित उस स्थल पर गए जहां से पूरा सिरमौर, शिमला उत्तराखंड और मैदानी क्षेत्रों का भाग दिखाई देता है। यहां हमने एक छिद्र में सिक्के डाले। यहां सिक्कों की खनखनाहट देर तक सुनाई पड़ती है। तब यहां पर भोलेनाथ की विशाल मूर्ति स्थापित नहीं हो पाई थी। केवल एक छोटा स्थल और ध्वज यहां लहराता था। 
इसी प्रकार चूड़धार में तब शिरगुल महाराज का पुराना ही मंदिर स्थापित था। 
‘थकान में चाय कारगर...! आप यदि चूड़धार की यात्रा पर जाएं तो एक बात का ध्यान रखें। कम से कम सामान अपने साथ ले जाएं। खाने पीने के सामान के साथ यदि चाय का जुगाड़ साथ ले जाएं तो आनंद आ जाएगा। दरअसल भारी थकान के बीच चाय अमृत के समान प्रतीत होती है। 
‘आ बैल मुझे मार...! वापसी में जब हम तीसरी के पास पहुंच कर आराम कर ही रहे थे। तभी मुझे एक शरारत सुझाई दी। पास ही बैलों का एक झुंड मगन होकर हरी घास चर रहा था। मैंने एक लाल-भूरे बैल के पास जाकर धीरे से कहा-‘आ बैल मुझे मार...!’ 
इतना सुनते ही बैल मेरे पीछे मारने भागा। मैं ढलान पर काफी नीचे तक भागता रहा। बैल मेरे पीछे सींग उठाए दौड़ रहा था। आखिर एक पत्थर के ऊपर चढ़कर मैंने अपनी जान बचाई थी। मैं डर के मारे थर-थर कांप रहा था। परन्तु मुझे अपनी शरारत पर हंसी भी आ रही थी। सचमुच मुझे भय और आनंद के मिश्रण की अनूठी अनुभूति हो रही थी। भाई वीरेन्द्र और मैं इस घटना के बाद देर तक एक दूसरे का हाथ पकड़ कर हंसते रहे। 
जीवन में सीख...! इस घटनाक्रम से मैंने जीवन में एक सीख सीखी है। हमें अपने बुजुर्गों द्वारा दी गई सीख का मान रखना चाहिए। ये हमेशा ही सच्चाई और अनुभव पर आधारित होती हैं। वरना आप अनुमान लगा सकते हैं। कैसे आ बैल मुझ मार कहने पर बैल मारने दौड़ सकता है। 
पर्यटन विकास के लिए चाहिए सुविधाएं...! चूड़धार क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। किन्तु सोलन से राजगढ़ और नौहराधार को जाने वाली सड़क की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। इसी प्रकार नाहन से रेणुका, संगड़ाह, हरिपुरधार सड़क भी काफी संकरी है। इस वजह से पहाड़ों का आनंद उठाने। और प्रकृति सौंदर्य को निहारने वाले पर्यटक। इस क्षेत्र का रूख नहीं करते।

-स्टोरीः आनंद राज के साथ रविन्द्र सभ्रवाल